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प्राचीन भारतीय और पुरातत्व इतिहास >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 प्राचीन भारतीय इतिहास

बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 प्राचीन भारतीय इतिहास

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2794
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 प्राचीन भारतीय इतिहास - सरल प्रश्नोत्तर

अध्याय - 3

पुरातात्विक उत्खनन विधियाँ

(Archaeological Excavation Methods)

प्रश्न- उत्खनन के विभिन्न सिद्धान्तों तथा प्रकारों का उल्लेख कीजिए।

सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. क्षेत्रीय उत्खनन पर प्रकाश डालिए।
2. परीक्षण परिखात किसे कहते हैं?
3. समकोण प्रणाली का मूल्यांकन कीजिए।
4. क्षेत्रीय उत्खनन में किन-किन बातों पर ध्यान देना आवश्यक है?
5. ग्रिड प्रणाली क्या है? समझाइए।
6. खण्डित ग्रिड प्रणाली की समीक्षा कीजिए।
7. उत्खन्न के प्रकार बताइये।

उत्तर -

वास्तव में उत्खनन पद्धति का विकास उन्नीसवीं शताब्दी के ईसवीं के पूर्व अव्यवस्थित ढंग से होते रहे। उत्खनन की इन विभिन्न पद्धतियों का विकास धीरे-धीरे हुआ। प्रारम्भ में तो उत्खननकर्ताओं का प्रमुख उद्देश्य तो यह रहा है कि समाधियों तथा प्राचीन टीलों को खोदकर प्राचीन एवं मूल्यांकन पुरावशेषों को खोजना था। उत्खनन स्तर आदि का क्रम प्रस्तुत करने में संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के तृतीय राष्ट्रपति थॉमस जेफरसन का नाम प्रमुख रूप से उल्लेखनीय है सर्वप्रथम उन्होंने 1784 ई. में अमेरिका के वर्जीनिया प्रान्त में एक टीले का उत्खनन किया परन्तु पुराविदों ने जेफरसन की उक्त पद्धतियों का अनुसरण नहीं किया। इसके उपरान्त हेनरिख, श्लीमन, फ्लिण्डर्स पेत्री पिटरिवर्स, लियोनार्द बूली, आर्थर इवन्स, सरजॉन मार्शल, सर मामर ह्वीलर आदि पुरातत्ववेत्ताओं के द्वारा संचालित खुदाइयों के फलस्वरूप उत्खनन के दौरान प्राप्त पुरावशेषों एवं पुपिटरिवर्स महोरानिधियों का विवरण तैयार करने की पद्धति के प्रचलन का श्रेय दय को है। इस सम्बन्ध में यह उक्ति सत्य प्रतीत होती हैं कि -

"Archaeologist digs up mass of objects illustrating the arts and handicrafts of the past, the temples in which men worshipped, the houses in which they lived, the setting in which their lives were spent and thus supplies material for a kind of social history 'could not had otherwise.

उत्खनन का महत्व बताते हुए डॉ. मदन मोहन ने कहा है कि - "किसी उत्खनन में विभिन्न मानव उपजीविकाओं के संयचों की पर्तों का वही महत्व होता है, जो पुस्तक में पृष्ठों का। उत्खनन विधियों के विकास क्रम को निम्नलिखित प्रकार से उल्लिखित किया गया है

(1) जिस पुरावशेष का उत्खनन हो रहा है, उसके विषय में पूरी सावधानी रखना और भावी उत्खनन के प्रति आदर।

(2) उत्खनन में पूर्ण सतर्कता एवं उपलब्धता, प्रत्येक वस्तु का संग्रह एवं वर्णन।

(3) प्रत्येक पुरावशेष एवं उत्खनन की यथावत योजना।
(4) उत्खनन के विवरणों का यथासम्भव शीघ्र प्रकाशन।

उत्खनन के सिद्धान्त या प्रकार

उत्खननकर्ता को मूल रूप में निम्नलिखित तीन सिद्धान्तों का अनुसरण करना चाहिए

(1) परीक्षण परिखात (Trial Trenching)

(2) वर्ग प्रणाली अथवा क्षेत्रीय उत्खनन (Square Digging or Area Excavation)

(3) समानान्तर उत्खनन (Parallel Excavaton)

1. परीक्षण परिखात - पुराविदों का अनुमान है कि किसी क्षेत्र में सर्वप्रथम उत्खनन होता है। चूँकि यह क्षेत्र परीक्षण के लिए होता है, इसीलिए इसे परीक्षण परिखात के नाम से पुकारा जाता है। इसके उपयोग से स्पष्ट हो जाता है कि यहाँ पर कोई अवशेष है या नहीं। इस विधि से उत्खनन करने पर सभ्यता के नष्ट होने का भय नहीं रहता। जबकि अधिक गहराई में उत्खनन कार्य करना होता है तो स्थलों का उत्खनन कार्य दुलर्भ हो जाता है। इससे केवल सीमित क्षेत्र तथा बहुत कम गहराई तक की सभ्यता का पता लगाया जा सकता है। उपलब्ध अवशेषों का उल्लेख करने में भी कठिनाई होती है। सर्वप्रथम इस विधि का उपयोग मैडम कैसिल ने किया था। इस सम्बन्ध में सर मार्टीमर ह्वीलर का अभिमत है कि-

If a line of ancient internchments, for example is thought to have passed some where through a certain field a trial trench across the field as the abvions method of proving or disproving the theory and if would be padantry protest."

ऐसा उत्खनन अधिक लाभदायक तब होगा, जबकि सर्वप्रथम इस विधि से उत्खनन करके यह पता लगा लें कि वहाँ पर कोई अवशेष है या नहीं। यदि वहाँ पर कोई अवशेष है तब समय, धन अपव्यय और स्थान का ध्यान रखते हुए आवश्यकतानुसार अन्य प्रणालियों से उत्खनन किया जाये। इस विधि से उत्खनन करने पर सभ्यता के नष्ट होने का भय बना रहता है तथा अधिक गहराई में उत्खनन कार्य दुलर्भ हो जाता है। हीलर के अनुसार, "बहुत आवश्यक होने पर ही इस उत्खनन विधि को प्रयोग में लाना चाहिए। इस उत्खनन का अधिक उपयोग तब होगा, जबकि सर्वप्रथम इस विधि का उत्खनन करके यह पता लगा लें कि वहाँ पर कोई अवशेष है अथवा नहीं।'

2. क्षेत्रीय उत्खनन अथवा समकोण प्रणाली - किसी भी क्षेत्र में जिसके विषय में सभ्यता के सम्बन्ध में पूर्ण जानकारी हो जाये, वहाँ पर वर्ग प्रणाली अथवा क्षेत्रीय उत्खनन करना चाहिए। परीक्षण खात लगाना यहाँ पर हानिकारक सिद्ध होता है। किसी भी क्षेत्र के उत्खनन से पूर्व निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना आवश्यक है-

1. उत्खनन का क्षेत्र कम से कम इतना विस्तृत हो, जिससे लेख और नियन्त्रण सुविधा से हो सके।

2. क्षेत्र इस ढंग का होना चाहिए कि उसे आवश्यकतानुसार जिस दिशा में चाहे बिना डेटम रेखा तोड़े विस्तार किया जा सके।

3. स्तरों का विधिवत् परीक्षण कर क्रमानुसार उसका नम्बर नोट कर लें।

4. उत्खनन के अन्त समय तक पूर्ण ऊर्ध्वाकार (Vertical Section) के अधिकतम बिन्दुओं को सतत सन्दर्भ के लिए सुरक्षित रखने के योग्य हो।

5. निरन्तर किए हुए प्रादेशिक उत्खननों का अन्त सरलता से समाकलन करने के योग्य हो।

6. मिट्टी को दूर करने के लिए बीच में काँटों या खोदे हुए भू-पृष्ठ पर यातायात में रुकावट न डालते हुए सब कहीं आसानी से सुगम हों।

7. यदि उत्खनन में अधिक धन और समय की बचत करनी हो तो वहाँ पर सम्पूर्ण क्षेत्र के उत्खनन की अपेक्षा थोड़े ही स्थल पर उत्खनन किया जाता है।

अधिक काल तक निवसित रहे स्थानों पर समकोण क्षेत्र बनाकर उत्खनन कार्य किया जाता है। हड़प्पा और मोहनजोदड़ो का उत्खनन इसका एक उदाहरण है। इसके लिए उत्खनन क्षेत्र को बराबर भागों में बाँट दिया जाता है। आवश्यकतानुसार इन समकोण क्षेत्रों को जिस दशा में चाहे बढ़ाया जा सकता है, पर डेटम रेखा को अपने पूर्व रूप में नहीं रखना चाहिए। समकोण की लम्बाई, चौड़ाई जितनी गहराई तक उत्खनन कार्य करना है, उसी के अनुसार रखनी चाहिए। एक समकोण से दूसरे समकोण के बीच की मिट्टी को काटकर मिलाया जा सकता है। प्राचीन नगर के अवशेषों का पता इस विधि से भली-भाँति लग सकता है।

प्रकाश के पूर्ण मात्रा में पहुँचने के कारण अत्यन्त गहराई तक भी स्तरों तथा उपलब्ध विभिन्न पदार्थों की परख की जा सकती है। वस्तुओं के प्राप्ति स्थान यथाक्रम नापने के लिए समकोण क्षेत्र के चारों ओर डेढ़ फुट की दूरी पर लकड़ी के खूँटे गाड़ दिये जाते हैं। उसके ऊपर कील ठोंककर सुतली की डोर बाँध दी जाती है। यह डेटम रेखा कहलाती है। उत्खननकर्ता को उत्खनन क्षेत्र की किसी भी दिशा में बढ़ाने में इस रेखा का विशेष ध्यान रखना पड़ता है। डेटम रेखा से प्राप्त वस्तु की लम्बाई × चौड़ाई x गहराई के रूप में ली जाती है। लकड़ी के खूँटे डेढ़ इंच समकोण से तथा 5 फुट तीन इंच लम्बे होते हैं। खूँटी दो इंच की होती है। प्रत्येक समकोण क्षेत्र का नामकरण कर दिया जाता है, यथा - A1, A2, A3, B1, B2, और Bg आदि। मार्शल महोदय ने तक्षशिला का उत्खनन वर्ष 1944-1945 में इस विधि से किया था। समकोण क्षेत्र के निकट नियन्त्रण गर्त का होना भी आवश्यक है।

यदि उत्खनन से अधिक धन और समय की बचत करनी हो, तो वहाँ समकोण क्षेत्र के उत्खनन के स्थान पर थोड़े ही स्थान पर उत्खनन किया जाता है। इस उत्खनन के निम्नलिखित प्रकार हैं-

1. ग्रिड प्रणाली - इस प्रणाली के अन्तर्गत सभी वर्गों को तीन फुट का स्थान छोड़ते हुए काट दिया जाता है और उसके बाद किसी भी एक क्षेत्र में उत्खनन कार्य होता है। वैसे इसका प्रयोग मिट्टी ढोने के लिए किया जाता है पर आवश्यकतानुसार इसे मिला भी दिया जाता है

2. खण्डित ग्रिड प्रणाली - इस प्रणाली के अन्तर्गत प्रत्येक खात को दो बराबर भागों में बाँट दिया जाता है और उनके बीच तीन फुट का स्थान छोड़ दिया जाता है। अधिकांशतः इस विधि का प्रयोग विस्तृत उजाड़ खण्डों में किया जाता है। पृथ्वी के गर्भ में दबे हुए अवशेषों का पता लगाने के लिए ये विधियाँ अधिक लाभकारी नहीं होती हैं। केवल इनके द्वारा ऊपरी अवशेषों का ही पता लगाया जा सकता है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- पुरातत्व क्या है? इसकी विषय-वस्तु का निरूपण कीजिए।
  2. प्रश्न- पुरातत्व का मानविकी तथा अन्य विज्ञानों से सम्बन्ध स्पष्ट कीजिए।
  3. प्रश्न- पुरातत्व विज्ञान के स्वरूप या प्रकृति पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  4. प्रश्न- 'पुरातत्व के अभाव में इतिहास अपंग है। इस कथन को समझाइए।
  5. प्रश्न- इतिहास का पुरातत्व शस्त्र के साथ सम्बन्धों की विवेचना कीजिए।
  6. प्रश्न- भारत में पुरातत्व पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  7. प्रश्न- पुरातत्व सामग्री के क्षेत्रों का विश्लेषण अध्ययन कीजिये।
  8. प्रश्न- भारत के पुरातत्व के ह्रास होने के क्या कारण हैं?
  9. प्रश्न- प्राचीन इतिहास की संरचना में पुरातात्विक स्रोतों के महत्व का मूल्यांकन कीजिए।
  10. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास की संरचना में पुरातत्व का महत्व बताइए।
  11. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन में अभिलेखों का क्या महत्व है?
  12. प्रश्न- स्तम्भ लेख के विषय में आप क्या जानते हैं?
  13. प्रश्न- स्मारकों से प्राचीन भारतीय इतिहास की क्या जानकारी प्रात होती है?
  14. प्रश्न- पुरातत्व के उद्देश्यों से अवगत कराइये।
  15. प्रश्न- पुरातत्व के विकास के विषय में बताइये।
  16. प्रश्न- पुरातात्विक विज्ञान के विषय में बताइये।
  17. प्रश्न- ऑगस्टस पिट, विलियम फ्लिंडर्स पेट्री व सर मोर्टिमर व्हीलर के विषय में बताइये।
  18. प्रश्न- उत्खनन के विभिन्न सिद्धान्तों तथा प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
  19. प्रश्न- पुरातत्व में ऊर्ध्वाधर और क्षैतिज उत्खननों के महत्व का मूल्यांकन कीजिए।
  20. प्रश्न- डेटिंग मुख्य रूप से उत्खनन के बाद की जाती है, क्यों। कारणों का उल्लेख कीजिए।
  21. प्रश्न- डेटिंग (Dating) क्या है? विस्तृत रूप से बताइये।
  22. प्रश्न- कार्बन-14 की सीमाओं को बताइये।
  23. प्रश्न- उत्खनन व विश्लेषण (पुरातत्व के अंग) के विषय में बताइये।
  24. प्रश्न- रिमोट सेंसिंग, Lidar लेजर अल्टीमीटर के विषय में बताइये।
  25. प्रश्न- लम्बवत् और क्षैतिज उत्खनन में पारस्परिक सम्बन्धों को निरूपित कीजिए।
  26. प्रश्न- क्षैतिज उत्खनन के लाभों एवं हानियों पर प्रकाश डालिए।
  27. प्रश्न- पुरापाषाण कालीन संस्कृति का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  28. प्रश्न- निम्न पुरापाषाण कालीन संस्कृति का विस्तृत विवेचन कीजिए।
  29. प्रश्न- उत्तर पुरापाषाण कालीन संस्कृति के विकास का वर्णन कीजिए।
  30. प्रश्न- भारत की मध्यपाषाणिक संस्कृति पर एक वृहद लेख लिखिए।
  31. प्रश्न- मध्यपाषाण काल की संस्कृति का महत्व पूर्ववर्ती संस्कृतियों से अधिक है? विस्तृत विवेचन कीजिए।
  32. प्रश्न- भारत में नवपाषाण कालीन संस्कृति के विस्तार का वर्णन कीजिये।
  33. प्रश्न- भारतीय पाषाणिक संस्कृति को कितने कालों में विभाजित किया गया है?
  34. प्रश्न- पुरापाषाण काल पर एक लघु लेख लिखिए।
  35. प्रश्न- पुरापाषाण कालीन मृद्भाण्डों पर टिप्पणी लिखिए।
  36. प्रश्न- पूर्व पाषाण काल के विषय में एक लघु लेख लिखिये।
  37. प्रश्न- पुरापाषाण कालीन शवाशेष पद्धति पर टिप्पणी लिखिए।
  38. प्रश्न- मध्यपाषाण काल से आप क्या समझते हैं?
  39. प्रश्न- मध्यपाषाण कालीन संस्कृति की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।।
  40. प्रश्न- मध्यपाषाणकालीन संस्कृति का विस्तार या प्रसार क्षेत्र स्पष्ट कीजिए।
  41. प्रश्न- विन्ध्य क्षेत्र के मध्यपाषाणिक उपकरणों पर प्रकाश डालिए।
  42. प्रश्न- गंगा घाटी की मध्यपाषाण कालीन संस्कृति पर प्रकाश डालिए।
  43. प्रश्न- नवपाषाणिक संस्कृति पर टिप्पणी लिखिये।
  44. प्रश्न- विन्ध्य क्षेत्र की नवपाषाण कालीन संस्कृति पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  45. प्रश्न- दक्षिण भारत की नवपाषाण कालीन संस्कृति के विषय में बताइए।
  46. प्रश्न- मध्य गंगा घाटी की नवपाषाण कालीन संस्कृति पर टिप्पणी लिखिए।
  47. प्रश्न- ताम्रपाषाणिक संस्कृति से आप क्या समझते हैं? भारत में इसके विस्तार का उल्लेख कीजिए।
  48. प्रश्न- जोर्वे-ताम्रपाषाणिक संस्कृति की विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
  49. प्रश्न- मालवा की ताम्रपाषाणिक संस्कृति का विस्तार से वर्णन कीजिए।
  50. प्रश्न- ताम्रपाषाणिक संस्कृति पर टिप्पणी लिखिए।
  51. प्रश्न- आहार संस्कृति का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  52. प्रश्न- मालवा की ताम्रपाषाणिक संस्कृति पर प्रकाश डालिए।
  53. प्रश्न- जोर्वे संस्कृति की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  54. प्रश्न- ताम्रपाषाणिक संस्कृति के औजार क्या थे?
  55. प्रश्न- ताम्रपाषाणिक संस्कृति के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  56. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता / हड़प्पा सभ्यता के नामकरण और उसके भौगोलिक विस्तार की विवेचना कीजिए।
  57. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता की नगर योजना का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  58. प्रश्न- हड़प्पा सभ्यता के नगरों के नगर- विन्यास पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  59. प्रश्न- सिन्धु घाटी के लोगों की शारीरिक विशेषताओं का संक्षिप्त मूल्यांकन कीजिए।
  60. प्रश्न- पाषाण प्रौद्योगिकी पर टिप्पणी लिखिए।
  61. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता के सामाजिक संगठन पर टिप्पणी कीजिए।
  62. प्रश्न- सिंधु सभ्यता के कला और धर्म पर टिप्पणी कीजिए।
  63. प्रश्न- सिंधु सभ्यता के व्यापार का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  64. प्रश्न- सिंधु सभ्यता की लिपि पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  65. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता के पतन के कारणों पर प्रकाश डालिए।
  66. प्रश्न- लौह उत्पत्ति के सम्बन्ध में पुरैतिहासिक व ऐतिहासिक काल के विचारों से अवगत कराइये?
  67. प्रश्न- लोहे की उत्पत्ति (भारत में) के विषय में विभिन्न चर्चाओं से अवगत कराइये।
  68. प्रश्न- "ताम्र की अपेक्षा, लोहे की महत्ता उसकी कठोरता न होकर उसकी प्रचुरता में है" कथन को समझाइये।
  69. प्रश्न- महापाषाण संस्कृति के विषय में आप क्या जानते हैं? स्पष्ट कीजिए।
  70. प्रश्न- लौह युग की भारत में प्राचीनता से अवगत कराइये।
  71. प्रश्न- बलूचिस्तान में लौह की उत्पत्ति से सम्बन्धित मतों से अवगत कराइये?
  72. प्रश्न- भारत में लौह-प्रयोक्ता संस्कृति पर टिप्पणी लिखिए।
  73. प्रश्न- प्राचीन मृद्भाण्ड परम्परा से आप क्या समझते हैं? गैरिक मृद्भाण्ड (OCP) संस्कृति का विस्तृत विवेचन कीजिए।
  74. प्रश्न- चित्रित धूसर मृद्भाण्ड (PGW) के विषय में विस्तार से समझाइए।
  75. प्रश्न- उत्तरी काले चमकदार मृद्भाण्ड (NBPW) के विषय में संक्षेप में बताइए।
  76. प्रश्न- एन. बी. पी. मृद्भाण्ड संस्कृति का कालानुक्रम बताइए।
  77. प्रश्न- मालवा की मृद्भाण्ड परम्परा के विषय में बताइए।
  78. प्रश्न- पी. जी. डब्ल्यू. मृद्भाण्ड के विषय में एक लघु लेख लिखिये।
  79. प्रश्न- प्राचीन भारत में प्रयुक्त लिपियों के प्रकार तथा नाम बताइए।
  80. प्रश्न- मौर्यकालीन ब्राह्मी लिपि पर प्रकाश डालिए।
  81. प्रश्न- प्राचीन भारत की प्रमुख खरोष्ठी तथा ब्राह्मी लिपियों पर प्रकाश डालिए।
  82. प्रश्न- अक्षरों की पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  83. प्रश्न- अशोक के अभिलेख की लिपि बताइए।
  84. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास की संरचना में अभिलेखों के महत्व का उल्लेख कीजिए।
  85. प्रश्न- अभिलेख किसे कहते हैं? और प्रालेख से किस प्रकार भिन्न हैं?
  86. प्रश्न- प्राचीन भारतीय अभिलेखों से सामाजिक जीवन पर क्या प्रकाश पड़ता है?
  87. प्रश्न- अशोक के स्तम्भ लेखों के विषय में बताइये।
  88. प्रश्न- अशोक के रूमेन्देई स्तम्भ लेख का सार बताइए।
  89. प्रश्न- अभिलेख के प्रकार बताइए।
  90. प्रश्न- समुद्रगुप्त की प्रयाग प्रशस्ति के विषय में बताइए।
  91. प्रश्न- जूनागढ़ अभिलेख से किस राजा के विषय में जानकारी मिलती है उसके विषय में आप सूक्ष्म में बताइए।
  92. प्रश्न- मुद्रा बनाने की रीतियों का उल्लेख करते हुए उनकी वैज्ञानिकता को सिद्ध कीजिए।
  93. प्रश्न- भारत में मुद्रा की प्राचीनता पर प्रकाश डालिए।
  94. प्रश्न- प्राचीन भारत में मुद्रा निर्माण की साँचा विधि का वर्णन कीजिए।
  95. प्रश्न- मुद्रा निर्माण की ठप्पा विधि का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  96. प्रश्न- आहत मुद्राओं (पंचमार्क सिक्कों) की मुख्य विशेषताओं एवं तिथिक्रम का वर्णन कीजिए।
  97. प्रश्न- मौर्यकालीन सिक्कों की विस्तृत जानकारी प्रस्तुत कीजिए।
  98. प्रश्न- आहत मुद्राओं (पंचमार्क सिक्के) से आप क्या समझते हैं?
  99. प्रश्न- आहत सिक्कों के प्रकार बताइये।
  100. प्रश्न- पंचमार्क सिक्कों का महत्व बताइए।
  101. प्रश्न- कुषाणकालीन सिक्कों के इतिहास का विस्तृत विवेचन कीजिए।
  102. प्रश्न- भारतीय यूनानी सिक्कों की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
  103. प्रश्न- कुषाण कालीन सिक्कों के उद्भव एवं प्राचीनता को संक्षेप में बताइए।
  104. प्रश्न- गुप्तकालीन सिक्कों का परिचय दीजिए।
  105. प्रश्न- गुप्तकालीन ताम्र सिक्कों पर टिप्पणी लिखिए।
  106. प्रश्न- उत्तर गुप्तकालीन मुद्रा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  107. प्रश्न- समुद्रगुप्त के स्वर्ण सिक्कों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  108. प्रश्न- गुप्त सिक्कों की बनावट पर टिप्पणी लिखिए।
  109. प्रश्न- गुप्तकालीन सिक्कों का ऐतिहासिक महत्व बताइए।
  110. प्रश्न- इतिहास के अध्ययन हेतु अभिलेख अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। विवेचना कीजिए।
  111. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन में सिक्कों के महत्व की विवेचना कीजिए।
  112. प्रश्न- प्राचीन सिक्कों से शासकों की धार्मिक अभिरुचियों का ज्ञान किस प्रकार प्राप्त होता है?
  113. प्रश्न- हड़प्पा की मुद्राओं के महत्व का मूल्यांकन कीजिए।
  114. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन में अभिलेखों का क्या महत्व है?
  115. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत के रूप में सिक्कों का महत्व बताइए।

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